दोस्तों, होली हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार है और ये त्यौहार पुरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से बनाया जाता है। होली के साथ ही एक फेस्टिवल और भी मनाया जाता है जिसे दुलहंडी बोला जाता है , होली और दुलहंडी के दिन लोग एक दूसरे पे रंग डालते है। चारो तरफ नांगरे बजाये जाते है ढोल बजाये जाते है। और लोग एक दूसरे के गले से मिलकर एक दूसरे को बधाई देते है , घरो में मिठाई और पकवान बनाये जाते है।
होलिका दहन की विधि :
होलिका दहन के समय लोग कुछ लकड़ी का ढेर लगा कर, उनको होलिका माता के रूप में पूजते है। इस पूजन में बच्चे , बूढ़े , जवान लोग सभी सम्लित होते है। और फिर शाम के समय अग्नि डालकर उन लकड़ियों को जलाया जाता है और ढोल और नंगारो से होलिका माता की गीत गए जाते है। लोग उस दहन में गेहू और जौ का घेवा भूनते है।
और उस भुने हुए गोहे को लोग पुरे साल घर में रखते है , बाद में औरते होलिका माता के गीत गाते हुए , जले हुए होलिका में पानी डालते है। लोग जलते हुए होलिका में से एक लड़की को भगत प्रह्लाद समझ के बहार निकलते है और फिर पानी में डाल के ठंडा करते है।
होलिका त्यौहार का पौराणिक इतिहास :
वैसे हिन्दू धर्म में हर एक धरम का अपना एक विशेष महत्व रहता है और हर एक त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा होती है , इस त्यौहार के पीछे भी एक बड़ूत बड़ी पौराणिक कथा है। और ये कथा ये है की :
बात बहुत पुराने समय की है। महाऋषि कश्यप ऋषि और दिति ने 3 संतान को जनम दिया जिसमे २ योद्धा जिनके नाम हिरणाक्ष और हिरणाकश्यप था और उनकी एक बहिन थी होलिका। होलिका को तपस्या करके एक वरदान मिला हुआ था की आग उसको नहीं जला सकती। इसका जन्म जनपद- कासगंज के सोरों शूकरक्षेत्र नामक बहुत ही धार्मिक स्थान पे हुआ। ऋषि पुत्र होते हुए उन्होंने राक्षस परवर्ती को अपनाया।
हिरणाकश्यप ने 3 पुत्रो को जनम दिया जिसके नाम थे प्रह्लाद अनुहल्लाद , सहलाद और हलाद। इनमे से प्रह्लाद भगवन विष्णु के बहुत बड़े भगत थे। वो हर समय भगवन विष्णु के धान में मगन रहते थे उनकी पूजा पाठ करते रहते थे।
उनके पिता भगवन विष्णु को अपना शत्रु समझते थे , वो अपने बल और पराक्रम से खुद को अपनी प्रजा और धरती पर भगवन बुलवाना चाहते थे , वो चाहते थे की सब लोग इस पृथवी पे उनको ही भगवन मने और हिरणाकश्यप की ही पूजा करे। जो लोग हिरणाकश्यप के इस प्रस्ताव को मैंने से इंकार कर देता था , हिरणाकश्यप उनको मौत के मुँह में भेज देता था। उनके इस तानाशाह से पृथवी पे मानवो का जीना मुश्किल हो गया था। हिरणाकश्यप लोगो पे अत्याचार करने लगा , लोगो को अपनी इछाओ के विरुद्ध जाकर हिरणाकश्यप की पूजा करनी पड़ती। ऋषि मुनि संत साधु सब इन सब से बहुत परेशान हो गए थे।
जब हिरणाकश्यप ने देखा की धरती पे सब लोग अब उसकी पूजा करने लगे है तो एक एक दिन उसने देखा की उनका बेटा प्रह्लाद अपने पिता को भगवन न समझ कर भगवन विष्णु की पूजा करता है। हिरणाकश्यप ने उसको प्यार से , धमका कर , डरा कर सभी पर्यटन कर लिए लेकिन प्रह्लाद ने भगवन विष्णु में रखी अपनी आस्था को नहीं त्यागा। पृथवी पर लोग और राजदरबार में लोग हिरणकश्यप की नींदा करने लगे , और खाने लगे की सब आपको भगवन मानते है लेकिन आपकी अपनी ही संतान आपको भगवन नहीं मानती तो अब लोग आपको भगवन कैसे मानेगे। इस सब से क्रोधित होकर हिरणाकश्यप बहुत क्रोधित हुआ और उन्होंने प्रह्लाद को मरने का आदेश दिया। प्रह्लाद को मरने के अनेक प्रसश किये गए लेकिन सभी प्रयाश विफल हो गए। प्रह्लाद हर एक बार भगवन की कृपा से बच जाता। हिरणाकश्यप बहुत परेशान हो गया।
एक दिन होलिका जो हिरणाकश्यप की बहिन थी उसने अपने भाई की परेशानी देखि और वो बोली की भैया मुझे आग ने न जलने का वरदान मिला हुआ है। आप एक अग्नि कुंड का आयोजन करवाए और मैं आपके पुत्र प्रह्लाद को अपने साथ लेके उस अग्नि कुंड में बैठूगी और इस तरह आपका वो शत्रू पुत्र जल कर रख हो जायेगा। इस बात को सुन कर हिरणकश्यप काफी खुश हुआ और उसने एक अग्नि कुंड का आयोजन करवाया।
होलिका , प्रह्लाद को लेकर उस अग्नि कुंड में चली गयी। कुछ देर तक तो सब ठीक था , लेकिन जब प्रह्लाद को अग्नि की लपटों का आभास हुआ तो उसके अपनी आंख बंद करके भगवन विष्णु का ध्यान करना सुरु कर दिया। विष्णु के लिए एक परीक्षा की घडी थी की अब वो क्या करे , एक और होलिका को वरदान मिला हुआ है और दूसरे तरफ उनका परम भगत प्रह्लाद उस अग्नि में है। फिर क्या था , भगत तो भगत होता है , भगत के सामने तो भगवन भी झुक जाते है। भगत प्रह्लाद को अग्नि की तेज लपटे छू तक न पायी और होलिका का बरदान का असर टूट गया और होलिका उस अग्नि में जलने लगी , जलते जलते होलिका जोर जोर से चिल्लाने लगी लेकिन वो अग्नि कुंड से बहार न आ पायी और अंत उसी अग्नि कुंड में वो खुद जल कर रख हो गयी और इसी तरह भगवन विष्णु ने अपने परम भगत प्रह्लाद की रक्षा की।
और तभी इस , इसी याद में आजतक होलिका त्यौहार मनाया जाने लगा। रेवाड़ी के पास एक स्थान है खोरी यहाँ ये त्यौहार की धूमधाम बहुत प्रशिद्ध है।
इसके साथ ही वृन्दावन , गोकुल, बरसाने की होली भी विश्व प्रसिद्ध है
कुछ और भी ऐतिहासिक धारणाये है इस त्यौहार के बारे में जैसे की एक बार इसा से ३०० वर्ष पुराने , विंध्य पर्वत के पास खोरी नमक स्थान पे भगवन श्री कृष्णा ने पत्नी नमक राक्षशी का वध किया और तब से होलिका के अगले दिन वह खुशियों के रूप में आपस में लोगो ने एक दूसरे पे रंग बिरंगे रंग डालकर खुशिया मनाई।
तो दोस्तों ये थी होलिका दहन के बारे में एक रोचक जानकारी, अगर आपको पोस्ट अछि लगी हो तो इस अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले और लाइक जरूर करे, अगर आपको इस त्यौहार के बारे में कुछ जानना है तो आप हमे कमेंट करके बता सकते है। धन्यवाद
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1 thought on “होली का त्यौहार : जानिए होली की सम्पूर्ण पौराणिक कथा की आखिर क्यों और कब मनाया जाता है होली का त्यौहार”
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