नई दिल्ली: इस बार बकरा ईद 10 जुलाई को मनाई जाएगी। इसको हम ईद-उल-अदहा भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार को ईद उल फीतर के करीब 2 महीने और 10 दिन बाद मुस्लिम धर्म में मनाया जाता है।
बता दें कि, बकरा ईद के दिन सभी मुस्लिम समुदाय के लोग अपने घर में पल रहे बकरे की कुर्बानी देते हैं और जिनके घर में बकरा नहीं होता है वो ईद से कुछ दिन पहले बकरा खरीद कर लाते हैं और उसकी कुर्बानी दी जाती है। बली देने के बाद इसका मीट बनाया जाता है जिसे गरीबों, रिश्तेदारों, और दोस्तों, में बांटा जाता है। इस पर सबसे ज्यादा हक़ गरीबों का होता है। कुर्बानी में दान करना बहुत जरूरी है।
क्यों मनाया जाता है बकरा ईद
बता दें कि, ईद का यह त्यौहार मुसलमानों के पैग़म्बर और हज़रत मोहम्मद के पूर्वज हज़रत इब्राहिम की दी गई कुर्बानी को याद के तौर पर मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब हज़रत इब्राहिम अल्लाह की बंदिगी यानि भक्ति कर रहे थे तो उनकी भक्ति से खुश होकर उनकी दुआ को कबूल कर लिया था। लेकिन अल्लाह ने उसके बाद उनकी परीक्षा ली। इस परीक्षा में अल्लाह ने इब्राहिम से उनकी सबसे कीमती और प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी।
हज़रत इब्राहिम ने दी थी अपने बेटे की बली
हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह की बात मान कर अपनी सबसे प्यारी चीज यानी की अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का निर्णय कर लिया। इसके बाद जब हज़रत इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे इतने में ही अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक बकरे को रख दिया जिसके बाद जो परीक्षा अल्लाह इब्राहिम की ले रहे थे वो उस सफल हो गए और इस दिन को बकरा ईद के रुप में मनाया जाने लगा।
कैसे मनाते हैं यह ईद
इस दिन सभी मुस्लमान सुबह उठकर नमाज पढ़ने जाते हैं। इसके बाद अपने घर पर पल रहे बकरे की बली देते हैं और जिन लोगों के पास बकरा नहीं होता है वो बकरा खरीद कर लाते हैं और उनकी बली देते हैं। बकरे की बली देने के बाद उसका मीट बनाया जाता है जिसके बाद सबसे पहले उसे गरीबों में दान किया जाता है इसके बाद दोस्तों और रिश्तेदारों को ईद मुबारक कहकर मीट दिया जाता है।
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