Private vs Govt schools : क्यों सरकारी स्कूल के बच्चे कामयाब हो रहे है

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Why govt schools are better tha private schools
Why govt schools are better tha private schools

दोस्तों, आज हम बात करने वाले है की सरकारी स्कूल्ज क्यों बेहतर है प्राइवेट स्कूल्ज से. आजकल हर एक माता पिता अपने बचो को एक बेहतरीन भविष्य देना चाहते है और वो चाहते है की उनका बच्चा एक ाचा इंसान बने और सफलता उनके कदम चूमे।  और इसी वजह से वो अपने बचो को लेकर प्राइवेट स्कूल्ज का चुनाव करते है।  कुछ और भी कारन है प्राइवेट स्कूल को चुनने का जैसे की पड़ोसियों की होड़ करना की उनका पडोसी का बचा एक महंगे स्कूल में पढता है , जिसकी फीस काफी महंगी है और स्कूल की बिल्डिंग भी काफी आकर्षित है और उस स्कूल में एक ाचा फर्नीचर और AC जैसी फैसिलिटी है। भले ही वह काम शिक्षित अध्यापक ही क्यों न काम करते हो जो काम वेतन पे लगाए हुए है , जिनको सिर्फ पेरेंट्स के सामने अचे से बेहवे करना सिखाया जाता है , ताकि ज्यादा से ज्यादा उनकी तारीफ हो समाज में।  उनको बचो के भविस्य से कोई दूर दूर तक लेना देना नहीं है।

लेकिन पेरेंट्स ये सोचते है की यार कही नाक न काट जाये पड़ोस में , क्योंकि नाक नहीं कटनी चाइये। और पिछले कुछ दसक में , प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थी ही आज की बेरोजगारी की भीड़ को बढ़ाये हुए है जबकि सरकारी स्कूल्ज के बच्चे  ज्यादा कामयाब हो रहे है।  जब बच्चे का करियर ख़तम हो जाता है तो समाज में कहते फिरते है की पढ़ाया तो बहुत अचे स्कूल्ज में था पता नहीं काम्यं क्यों हो गया और  उस गरीब इंसान का बेटा आज एक सरकारी नौकरी में है।

क्योंकि ये उन्ही गलतियों का नतीजा है , जो बच्चे के भवष्य को निर्धारित करने के समय हमे अपने नाक न कटनी की चिंता थी। तभी तो कहते है की अब पछताए क्या हॉट जब चिड़िया चुग गयी खेत।

तो दोस्तों अगर आप भी एक पैरेंट है तो , समझो ये पोस्ट आपके लिए ही है और आप अपने बच्चे के भविष्य के लिए इसे पूरा लास्ट तक जरूर पढ़े।

आज हम वो खामिया बतायेगे की क्यों सरकारी स्कूल्ज प्राइवेट स्कूल्ज से बढ़कर है , तो बने रहिये इस पोस्ट के साथ अंत तक।

कुछ महतवपूरण जानकारिया :

१.  कम शिक्षित अध्यापक :

अब जरा सोचो की हम बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ते है और सपने सरकारी नौकरी के देखते है क्यों।  जरा इस बात को थोड़ा पलट के देखो।

सरकारी स्कूल्ज में अध्यापक बनने के लिए अपने अचे मार्क्स चाइये , फिजिकल फिट होना जरूरी है , अनेक पॉपुलर कोर्स कम्पलीट करने पड़ते है जैसे की , NET , TET , JBT. तभी आप सरकारी अध्यापक की सूचि में खड़े होने के लायक हो सकते हो।  लेकिन एक प्राइवेट स्कूल में जाने के लिए आपको कुछ खास नहीं करना , थोड़ी सी इंग्लिश आणि चाइये और आपको थोड़ा स्मार्ट बनना पड़ेगा , समझो आप प्राइवेट स्कूल में अध्यापक बन गए।

एक सरकारी अध्यापक की म्हणत और लगन की वजह से उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन आ जाता हैं और वो जीवन के अचे और बुरे अनुभव से गुजरता हुआ जाता है जिसको वो अपने विद्यार्थी में साझा करने की सोचता है , उनको अपनी नौकरी से सम्बंधित कोई तनाव नहीं होता।

लेकिन वही प्राइवेट स्कूल में काम वेतन की मार से एक अचे अध्यापक को सर्च किया जाता है , अब जब अचे अध्यापक सरकारी बन चुके है तो काम वेतन में भला एक ाचा अध्यापक कैसे मिल सकता है।  और जो मिलते है न उनके पास सीख्शा का अनुभव है और वो अपने सीनियर्स को इम्प्रेस करने के लिए कुछ भी करेगा।  और वो आपके बचे के भविष्य से खेल कर अपना अनुभव इकट्ठा करता है तो सोचो वो आपके बचे को कैसा अनुभव जिंदगी का शेयर करेगा , ये वही अध्यापक है जो कभी प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे और आज वही पढ़ा रहे है , ये थोड़ा कड़वा है मगर सच है।

क्या ऐसे अनुभवी अध्यापक से आप अपने बच्चे के एक सुनहरे भविष्य की कल्पना कर रहे हो , अगर कर रहे हो तो आप बहुत ही गलत हो।  ये भारत जैसे देश में तो मुमकिन नहीं है।

२. एजुकेशन पैटर्न एंड स्य्स्तेमातृक मनोविज्ञान :

जैसा की हम जानते है की सरकारी स्कूल्ज का सिस्टम प्राइवेट स्कूल्ज से थोड़ा अलग होता है और वो ऐसे ही नहीं होता।  उस पैटर्न को बनने के लिए बहुत पढ़े लिखे लोग शिक्षा विभाग में बैठे है जो काफी निष्कर्ष के बाद ये फैसला लेते है , जबकि एक प्राइवेट स्कूल में सिर्फ प्रिंसिपल स्कूल की सुविधा के अनुसार ये फैसले लेते है।

सरकारी स्कूल्ज में शिक्षा के प्रक्रिया , सभी बचो को ध्यान में रख के बनायीं जाती है जिसमे , प्रतिभाशाली और और कम IQ लेवल के बचे को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है , लेकिन प्राइवेट स्कूल्ज में सभी पैटर्न सबके लिए कॉमन होते है , जिस विद्यार्थी का  IQ सही है तब तो पैटर्न ठीक है लेकिन अगर आपका बच्चा काम IQ लेवल से गुजर रहा है तो समझो , वो विद्यार्थी अंदर ही अंदर घुटन महसूस करेगा और बाकि बच्चो से पिछड़ जायेगा।

अब बात आती है की कम IQ वाले बच्चे को कैसे उभरा जाये तो वो सरकारी स्कूल्ज के अनुभवी अध्यापक ही जान पते है क्योंकि जो अध्यापक परीक्षा उन्होंने दी है उनमे उन्होंने वो सारे केसेस पढ़े है जो एक विद्यार्थी के लिए होने चाइये।

जो एक प्राइवेट स्कूल्ज के  अध्यापक कभी नहीं  दे पाएंगे आपके बच्चे को , क्योंकि प्राइवेट स्कूल्ज के अध्यापक  ने ऐसी कुछ परीक्षा नहीं दी है।

३. कल्चर एंड हाई एज्ड टीचर्स :

क्या आप  जानते हो की बच्चे की शिक्षा को लेके काफी मनोविज्ञानिक ने तथ्य दिए जैसे क्लार्क।  कलर्क का मानना था की अगर एक काम उम्र के बच्चे   को एक महिला अध्यापक  पढ़ाती है तो बच्चा जल्दी सिखने की परवर्ती को अपनाता है।

क्योंकि एक बच्चा , अपनी माँ से बहुत अधिक संपर्क में रहता है और एक महिला अध्यापक से उसे नम्रता का एहसास होता है जबकि एक युवा विद्यार्थी  लिए काफी उम्र का अध्यापक होना जरूरी है और सरकारी स्कूल्स में अध्यापक और विद्यार्थियों की उम्र को ध्यान में रखते हुए प्रोमोशंस मिलते है।

 अगर आपका बच्चा एक बड़ी उम्र से सम्बन्ध रखता है तो ये जरूरी है की उसकी उम्र से काम से काम १०-15 साल बड़े अध्यापक का होना जरूरी है।  और  सुविधा एक सरकारी स्कूल्ज में अच्छे से मिलती है।  ताकि युवा विद्यार्थी अपने अध्यापक को व्यक्तिगत रूप से अध्यापक समझे।

जबकि प्राइवेट स्कूल में युवा विद्यार्थी की डिमांड को ध्यान में रखते हुए एक जवान अध्यापक का चयन किया जाता है , ताकि बचे आकर्षण की वजह से स्कूल में लम्बे समय तक बने रहे। जिस प्राइवेट स्कूल में युवा अध्यापक की उम्र और आकर्षण ज्यादा  विद्यार्थी की भीड़ जयादा होती है।

और अब बात आती है एक माहोल की , भले ही सरकारी स्कूल में हर तरह की परवर्ती वाले बच्चे आते है तो वही प्राइवेट में भी उस से भी बुरा माहोल रहता है।

 लेकिन सरकारी स्कूल में विद्यार्थी को शिक्षा के ज्ञान के अतिरिक्त ज्यादा उम्र के अध्यापक जीवन के अनुभव और संस्कृति से सम्बंदित जानकारिया समय समय पे देते है।  और  इसी वजह से सरकारी स्कूल्ज के विद्यार्थियों में अध्यापक के  प्रति और अपने बड़ो के प्रति आदर की भावनाओ का विकास होता है।

  जबकि प्राइवेट स्कूल्ज में बस लेक्चर ख़तम तो  मतलब नहीं उन विद्यार्थियो से। और  विद्यार्थियो को सिलेबस के अलावा कुछ नहीं सिखाया जाता है और न ही प्राइवेट स्कूल्ज के विधयर्थियो को ज्यादा ज्ञान  की कैपेसिटी होती है।

भारतीय शिक्षण संसथान  2010  सर्वे में पाया गया है की प्राइवेट स्कूल्ज के बच्चो में काम उम्र में  तम्बाकू , गुटके और सिगरेट जैसी लत जयादा पायी जाती है और ये अनुपात कम नहीं है है बल्कि 98.2 % बताया गया है। जहा लड़किया भी शामिल है।  अश्लीलता  भी प्राइवेट स्कूल में जयादा पाए जाने का अनुपात है।

तो दोस्तों ये थी एक छोटी  जानकारी जो हमे आपसे साँझा की , अब फैसला आपके हाथ में है। अगर आपके पास कोई सुझाव है या कुछ तर्क है तो क्रीपया करके नीचे कमेंट जाऊर लिखे।  धन्यवाद्


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