शाम का समय था और मैं अपने किसी दोस्त से मिलने के लिए रेलवे स्टेशन पे आ गयी थी , मौसम सुहावना सा था , ठंडी हवाएं चल रही थी , मेरी दोस्त शाम की ट्रैन से जयपुर से आ रही थी , और मै उनका इंतज़ार कर रही थी । मुझे करीब करीब इंतज़ार करते हुए ३० मिनट्स हो गयी थी ,
आखिर मैं अपनी हॉस्टल की दोस्त से मिलने के लिए की मैं सायद काफी समय पहले आ गयी थी स्टेशन पे।
ठंडी हवाएं चल रही थी , ऐसा मौसम था मनो मेरी ज़िन्दगी में कुछ नया होने वाला है।
तभी मुझे काफी इंतज़ार के बाद रहा नहीं गया और मैं ट्रैन को देखने लगी , पटरी से २ फ़ीट के आसपास ऊँचा होगा प्लेटफार्म।
तभी मेरी नजर ट्रैक के सामने गयी , सामने एक खूबसूरत नौजवान था , गठीला बदन , अछि खासी हाइट।
मैं ऐसा नौजवान अपनी लैफे में नहीं देखा था. कुछ पल के लिए मनो पल रुक सा गया हो. मैं खा हो क्या कर रही कुछ नहीं पता था।
मैंने उस एक पल में हज़ारो सपने सजा लिए की काश ये इंसान मेरी ज़िन्दगी में आजाये।
मैं किसी भी तरह उसको पाना च रही थी। सायद यही प्यार था ,
मैंने इस से पहले कभी ऐसा फील नहीं हुआ।
ट्रैन लगभग मुझे से ३०० मत्र दूर होगी और धीमे हो गयी थी। मुझे तो इतना भी ख्याल नहीं था की जिस ट्रैक पे कड़ी हो उस ट्रैक पे भी ट्रैन आने वाली है. क्योंकि मेरा ध्यान तो भांग हो चूका था.
मुझे ऐसे लगा की वो लड़का कभी ट्रैन को देख रहा है और कभी मुझे. मुझे तो उसका नाम तक नहीं पता था। मेरा दुपट्टा हलवा में लहरा रहा था। मेरे बालो पे भी मेरा कोई कण्ट्रोल नहीं था , मैं खा हो क्या क्र रही हो सब कुछ भूल गयी , धीमे धीमे गरम हवाएं अंदर से निकल रही थी , दिल मचल रहा था , मनो अगर वो चला गया तो सायद मेरा सुनहरा सपना कहीं टूट न जाये।
तभी वो लड़का मेरे पास डोडा हुआ आया और अचानक ट्रैक पे चढ़ के मेरा हाथ पकड़ के खींच लिया अपनी तरफ. मुझे लगा ये कोई सपना है।
मैं तो अपने ऊपर से कण्ट्रोल खो ही बैठी थी. मैं उसके इतना करीब थी की मेरे उभार उसको टच क्र रहे थे। उसकी साँस से मेरे सामने के बाल उड़ रहे थे। मैं अंदर ही अंदर टूट रही थी। हम बहुत करीब आ चुके थे।
अचानक से उसने बोलै क्या तुम अंधी और या आपको सुनाई नहीं देता।
अचानक धक्का लगने से मुझे कुछ होस आया और मैं थोड़ी दुरी बनाते हुए आस पास देखा , स्टेशन पे ६-७ लोग होंगे और वो मुझे दूर के देखते ही जा रहे थे , आखिर मैं उस लड़के के इतनी करीब थी।
तभी वो लड़का बोलै की सुनो क्या आपको कुछ दिखाई नहीं देता इतनी ही देर में वह ट्रैन आ गयी। मुझे अजीब सा लग रहा था की मुझे अचानक से ये क्या हो गया।
जब मैंने देखा की जो मुझे बोल रहा है वो वही लड़का है तो मैं बोली दीखता भी है और सुनता भी है ,
फिर वो हसीं लड़का बोलै अभी आप ट्रैन के ट्रैक पे थी आपका ध्यान कहा था। मैं क्या बताती उसे की मैं अपने सपनो के राजकुमार को देख के खो गयी थी।
मैंने अचनाक महसूर किया की ट्रैन से लोग उतर रहे है। मैंने माहोल को नार्मल करते हुए और अपने बालो को संभल ते हुए खा की धन्यवाद् , वैसे तो मैं इंग्लिश का उसे ज्यादा करती हो पर उस दिन मैंने हिंदी में उनको इज्जत देते हुए थैंक्स खा।
कुछ ही पल मुझे लगा की अब मैं उसे खो दूंगी काश ट्रैन कुछ पल और नहीं आती।
तभी मेरे पीछे से एक लड़की की आवाज़ आयी भैया , लेकिन मुझे वो आवाज़ कुछ जनि पहचानी लग रही थी। मैंने महसूर किया की वो आवाज़ मेरे किसी फ्रेंड की है लेकिन वो भैया क्यों बोल रही है।
मैं मुद के देखा तो वो बोले अरे सुनीता तुम भी , हम दोनों को वो साथ देख के बोली क्या आप मेरे भैया को जानती हो।
मेरे तो मनो होस ही उड़ गए हो। की जिसको मैं खोना चाहती थी वो तो आलरेडी मेरे नजदीक का ही है। फिर उस पल मैंने बात को टालते हुए माहोल को नार्मल करते हुए था वो छोड़ ये बता की कैसा रहा सफर , उसने अपने भाई से ख़ास की ये मेरी सबसे खास फ्रेंड है भैया। मुझे भी इसी पल का इंतज़ार था की वो कुछ ऐसा ही बोल दे , शाम हो चुकी थी और ठण्ड भी बढ़ गयी थी , मेरे हाथ सुकड़ने लगे , उसके भाई ने उसका सामान उठाया और एक बैग मुझे देते हुए बोलै अपनी फ्रंड का कुछ सामान उठाओ ,
पर मेरे हाथ कपट हुए तो समझ गया की मुझे ठण्ड लग रही है , कुछ ही दूर चले थे की वो मुझे २ बार पलट के देख चूका था , अब मुझे फ्रेंड के आने की ख़ुशी नहीं थी मेरी ख़ुशी का तो कुछ और ही ठिकाना था। तभी मैंने बोली इनका नाम क्या है तो मेरी फ्रेंड बोली मेरे भैया का नाम हर्षवर्धन है , हर्ष बोलते है हम इनको , तभी हर्ष ने मुझे भाप लिया और बोलै चलो पहले चाय पिटे है उस दूकान पे, सामने एक चाय की दुकान थी, छोटी सी दूकान और बैठने के नाम पे एक दो पत्थर पड़े थे , हमने चाय बोल दी और चाय पिने लगे।
एक दो ही चुस्की ली थी की मैं बोली की अचानक आने का क्या कारन है इन दिनों तो कोई हॉलीडेज भी नहीं होता। सायद वो सवाल मुझे नहीं करना था क्योंकि उसके जवाब में जो तूफ़ान आया वो मेरे सरे सामने उठा ले गया , वो बोली की पता नहीं मेरे भैया हर्ष की शादी है , शादी का लब्ज़ सुनते ही मेरे हाथ पैर ने मनो मेरा साथ छोड़ दिया। मैं सोचने लगी की ज़िन्दगी कितनी अजीब है फर्स्ट टाइम कुछ हुआ और पल में ही सब कुछ बिखर गया। बायीं आंख में हलके से १-२ आंसू चाक आये। दुपट्टे से पूछ ही रही थी की फ्रेंड बोली क्या हुआ , उसको क्या बताती की मेरे साथ क्या हुआ है इन ३०-४० मिनट में।
तभी मेरी फ्रेंड ने बोलै भैया सुनीता को अपने कार्ड दिया तो भैया ने जवाब दिया की दीदी को हम कैसे भूल सकते है।
मुझे मनो झटका सा लगा की ये सब मेरे साथ ही क्यों। मैंने जल्दी से चाय ख़तम की और अपने आप को संभल ते हुए बोली चलो घर चलते है ठण्ड बढ़ गयी है। घर जाते जाते मैंने काफी फैसले जिंदगी में लिए की किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। ये थी मेरे पहले प्यार की अधूरी कहानी। दोस्तों भी किसी से सच्चा प्यार हुआ है , अगर हुआ है तो यहाँ कमेंट करो। …