मज़बूत होती सरकार, कमज़ोर पड़ती संवैधानिक संस्थाएं!

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नई दिल्ली- लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस में मंथन का दौर जारी है और इस दौरान यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की पहली औऱ बेहद कड़ी प्रतिक्रिया सुनने को मिली। अपने संसदीय क्षेत्र पहुंची सोनिया ने बीजेपी पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि सत्तासीन दल ने सत्ता में बने रहने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद पर बनाए रखने के लिए ‘मर्यादा की सभी सीमाएं’ पार कर दीं। इनका इशारा ईवीएम के दुरुपयोग पर था यानि सीधे सीधे निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगा दिए। हालांकि, विपक्ष लगातार ऐसे आरोप लगाता रहा है और सिर्फ निर्वाचन आयोग ही नहीं तमाम दूसरी संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज पर सवाल उठाता रहा है।

संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग

जब जब केन्द्र में मजबूत सरकार होती है या कहें कि कुर्सी पर मजबूत पीएम होता है तब तब संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग की आशंका भी बढ़ जाती है और दुरुपयोग भी। इतिहास गवाह रहा है कि ऐसी सूरत में संवैधानिक संस्थाओं को काम करने की नहीं आजादी रहती है..यहां तक कि रूटीन के कामों में भी सरकार की दखल अंदाजी कई बार सीमाएं लांघ जाती है। आजाद भारत में पंडित नेहरू के नेतृत्व में बनी पहली सरकार पर भी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के संगीन आरोप लगे और ऐसे ही आरोपों के घेरे में इंदिरा गांधी की सरकार भी रही। इन दोनों की नेताओं के कार्यकाल के दौरान अपने राजनीतिक एजेंडा को बढ़ाने के लिए , अपने सियासी फायदों की रक्षा करने के लिए और अपने राजनैतिक विरोधियों के खिलाफ इन संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल करने के गंभीरआरोप लगे।

संवैधानिक संस्थाएं की आजादी और अधिकार

जब कि इसके ठीक उलट कुछ ऐसे ही प्रधानमंत्रियों का दौर आया जिनमें राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, पीवी नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह के नाम शामिल हैं। इनके कार्यकाल के दौरान संवैधानिक संस्थाएं अपने अधिकारों का ज्यादा निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से निर्वहन करती रही हैं। फिर चाहे वो निर्वाचन आयोग हो, सीबीआई हो , ईडी हो या फिर सीवीसी। जो आजादी और अधिकार राजीव गांधी, अटलजी, नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह के दौर में इनसंस्थाओं को मिले हुए थे वो शायद ही किसी दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल में मिले होंगे। इन प्रधानमंत्रियों ने अपनी ही सरकार के और घटक दलों के मंत्रियों और पदाधिकारियों के खिलाफ भी जांच एजेंसियों को कार्रवाई करने की खुली छूट दे रखी थी।

संवैधानिक संस्थाओं पर गंभीर आरोप!

इसके विपरीत मजबूत सरकारों और मजबूत प्रधानमंत्रियों के दौर में इन संवैधानिक संस्थाओं को लेकर हमेशा से तरह-तरह के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इंदिरा जी के दौर में भी इन संस्थाओं में नियुक्तियों में भी वरिष्ठता और योग्यता को नज़र अंदाज करने के आरोप लगा करते थे तो अगर आज नरेन्द्र मोदी सरकार पर इन संस्थाओं के कामकाज को प्रभावित करने के आरोप लग रहे हैं तो ये कोई अनहोनी घटना नहीं है। इस तरह की घटनाएं और आरोप तो दुनिया के और भी तमाम मुल्कों में पढ़ने –देखने को मिलते हैं चाहे वो अमेरिका हो या फिर रूस।


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