नई दिल्ली: भारत ने गेंहू के निर्यात पर रोक लगा दी है। सरकार ने इसके पीछे खाद्य सुरक्षा का हवाला दिया है। शुक्रवार को विदेश व्यापार निदेशालय की तरफ से जारी सरकारी गजट में आये नोटिस में कहा गया है कि दुनिया में बढ़ती कीमतों के कारण भारत उसके पड़ोसी और संकट वाले देशों में खाद्य सुरक्षा को खतरा है। भारत का ये भी कहना है कि गेहूं का निर्यात रोकने की प्रमुख वजह है घरेलू बाजार में उसकी कीमतों को बढ़ने से रोकना। भारत सरकार के इस फैसले का असर एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों पर होगा।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती हैं कीमतें
इस प्रतिबंध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें और ज्यादा बढ़ सकती हैं। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 40 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। भारत के कुछ बाजारों में इसकी कीमत 25,000 रुपये प्रति टन है जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150 रूपये ही है। हालांकि सरकार ने कहा है- उन देशों को निर्यात जारी रहेगा जिन्होंने “भोजन की सुरक्षा की जरूरत” को पूरा करने के लिए सप्लाई का आग्रह किया है।
क्या कहते हैं गेंहू डीलर
गेंहू के निर्यात पर रोक के फैसले पर गेंहू डीलरों का कहना है कि यह हैरान करने वाला है। इसका कारण वे महंगाई के आंकड़ों को भी बताते हैं। खाने पीने की चीजों की कीमतें बढ़ने की वजह से भारत में खुदरा महंगाई की सालाना दर अप्रैल में आठ सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। कुछ व्यापारी निर्यात को रोकने के फैसले को एक बिना सोची समझी प्रतिक्रिया भी बता रहे हैं।
यूक्रेन-रूस जंग ने बढ़ाया संकट
रूस और यूक्रेन के बीच जंग ने अनाज संकट को और गहरा कर दिया है। क्योंकि यूक्रेन और रूस दुनिया भर में पैदा होने वाले गेहूं में एक तिहाई की हिस्सेदारी करते थे। लेकिन युद्ध के कारण ना सिर्फ वहां उत्पादन पर असर पड़ा है बल्कि निर्यात लगभग पूरी तरह से बंद हो गया है। यूक्रेन के बंदरगाह पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बुनियादी ढांचे के साथ ही अनाजों के गोदाम भी युद्ध में तबाह हो रहे हैं।
क्या पैदावार में कमी है वजह
ग्लोबल ट्रेडिंग फर्मों ने चिंता जताई है कि इस साल गेंहू की उपज घट कर 10 करोड़ टन या इससे भी कम रह सकती है। सरकार ने इससे पहले उत्पादन 11.13 करोड़ टन रहने की उम्मीद जताई थी जो अब तक का सर्वाधिक है। ट्रेडिंग फर्मों का कहना है कि सरकार की खरीद 50 फीसदी से भी कम है, बाजारों को पिछले साल की तुलना में कम सप्लाई मिल रही है।
इसका कारण फसल में कमी माना जा रहा है। अप्रैल में भारत ने रिकॉर्ड 14 लाख टन गेहूं का निर्यात किया और मई में पहले से ही 15 लाख टन गेहूं के निर्यात के सौदे हो चुके हैं। 2022-23 के लिए भारत ने 1 करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य रखा था। महामारी के दौर में भारत ने करीब 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटा है और उसकी वजह से उसके भंडार में उतना अनाज नहीं है कि वह खुद को सुरक्षित महसूस करे। मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन के लिए भारत को हर साल करीब 2.5 करोड़ टन गेहूं की जरूरत होती है।
राज्यों में भी गेंहू कटौती
सबसे ज्यादा गेहूं उगाने के मामले में भारत दूसरे नंबर है। हालांकि उसका ज्यादातर हिस्सा देश के लोगों का लोगों का पेट भरने में ही खर्च हो जाता है। केंद्र की ओर से कहा गया है कि बढ़ती कीमतों को देखते हुए ये कदम उठाया गया है।
साथ ही आठ राज्यों में मुफ्त राशन में दिए जाने वाले गेहूं में अगले महीने से कटौती करने का फैसला लिया जा चुका है। अब इसे सिर्फ गरीब परिवारों की चिंता मानकर अपने लिए ऑल इज वेल मान लेना भी ठीक नहीं। हालात गंभीर हैं।
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